माना कि मुक़द्दर का लिखा अपनी जगह है, फिर भी तो फकीरों की दुआ अपनी जगह है, मैं हर रोज़ इसी पेज के कोने में मिलूँगा वैसे तो मेरा असली पता अपनी जगह है। माना कि मुक़द्दर का लिखा अपनी जगह है, फिर भी तो फकीरों की दुआ अपनी जगह है, मैं हर रोज़ इसी पेज के कोने में मिलूँगा वैसे तो मेरा असली पता अपनी जगह है।

Tuesday, September 7, 2010

गम-ए-ज़िन्दगी

खुदा के फैज़ की शायद यही निशानी है
गमो का बोझ है और उम्र जाविदानी है...इन्दर भान भसीन

1 comment:

  1. ye to jindgi ko jine ka nazariya hai...
    kuch logo ke liye aag ka dariya hai...
    to kuch ke liye utsav jindgani hai...

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