ये और बात है कि आंधी हमारे बस में नहीं ,
मगर चिराग जलाना तो इख्तियार में है ...!!!
बेइंतेहा खामोश थी
उसकी हसरतें,
लोग फ़िर भी क्यूँ उन्हें
कुचलते चले गए...!! "तन्हा"
"आदमी बुलबुला है पानी का
और ...पानी की बहती सतह पर
टूटता भी है..डूबता भी है ...
फ़िर उभरता है ...फ़िर से बहता है...
न समंदर निगल सका उसको...
न तवारीख तोड़ पायी है...
वक्त की मौज पे सदा बहता ...
आदमी बुलबुला है पानी का....!!!"