माना कि मुक़द्दर का लिखा अपनी जगह है, फिर भी तो फकीरों की दुआ अपनी जगह है, मैं हर रोज़ इसी पेज के कोने में मिलूँगा वैसे तो मेरा असली पता अपनी जगह है। माना कि मुक़द्दर का लिखा अपनी जगह है, फिर भी तो फकीरों की दुआ अपनी जगह है, मैं हर रोज़ इसी पेज के कोने में मिलूँगा वैसे तो मेरा असली पता अपनी जगह है।

Tuesday, February 24, 2009

यही है सच ज़िन्दगी का

"आदमी बुलबुला है पानी का

और ...पानी की बहती सतह पर

टूटता भी है..डूबता भी है ...

फ़िर उभरता है ...फ़िर से बहता है...

न समंदर निगल सका उसको...

न तवारीख तोड़ पायी है...

वक्त की मौज पे सदा बहता ...

आदमी बुलबुला है पानी का....!!!"

1 comment:

  1. वाकई! यही सच है...इस जीवन का...आसमान का...हम सबका...धन्यवाद...यथार्थ से साक्षात्कार कराने के लिए...

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