"आदमी बुलबुला है पानी का
और ...पानी की बहती सतह पर
टूटता भी है..डूबता भी है ...
फ़िर उभरता है ...फ़िर से बहता है...
न समंदर निगल सका उसको...
न तवारीख तोड़ पायी है...
वक्त की मौज पे सदा बहता ...
आदमी बुलबुला है पानी का....!!!"
वाकई! यही सच है...इस जीवन का...आसमान का...हम सबका...धन्यवाद...यथार्थ से साक्षात्कार कराने के लिए...
वाकई! यही सच है...इस जीवन का...आसमान का...हम सबका...धन्यवाद...यथार्थ से साक्षात्कार कराने के लिए...
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